Hindi Shayari

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यकीन और दुआ नजर नहीं आते, मगर नामुमकिन को मुमकिन बना देते हैं। अब कौन से मौसम से हम आस लगायें, बरसात में भी याद न जब उनको हम आये। ऐ दिल! मत कर इतनी मोहब्बत तू किसी से, इश्क़ में मिला दर्द तू सह नहीं पायेगा, टूट कर बिखर जायेगा एक दिन अपनों के हाथों, किसने तोड़ा ये भी किसी से कह नहीं पायेगा। यकीन और दुआ नजर नहीं आते, मगर नामुमकिन को मुमकिन बना देते हैं। मेरी आँखों में मोहब्बत की चमक आज भी है, फिर भी मेरे प्यार पर उसको शक आज भी है, नाव में बैठ कर धोये थे उसने हाथ कभी, पानी में उसकी मेहँदी की महक आज भी है।

अजीब खेल है ये मोहब्बत का, किसी को हम न मिले, कोई हमें ना मिला।


दर्द की भी अपनी अलग अदा है
वो भी सहने वालो पर फ़िदा है

गुज़र जायेगी कुछ इस तरह बसर करके
तेरी हसरतों के साथ रह-गुज़र करके।

दैर-ओ-हरम में चैन जो मिलता, क्यों जाते मैख़ाने लोग ।
अब जब मुझ को होश नहीं है, आये हैं समझाने लोग ।।

जो नज़रें रूकती नहीं ढूढंते हुए मंज़िल-ए-अहम
उन नज़रों की गिरफ़्त में एक ज़माना आज भी क़ैद हैं।

सारी बस्ती कदमों में है ये भी एक फनकारी है वरना…
बदन को छोड़के अपना जो कुछ है सरकारी है।

कभी प्यार करने का दिल करे तो ग़मों से करना..
सुना है, जिसे जितने प्यार करो वो उतना दूर चला जाता है।

क्या दुआ करु मेरे दोस्तों के लिए ऐ खुदा…
बस यही दुआ है कि, मेरे दोस्त कभी किसी दुआ के मोहताज न हो।

खुशमिजाजी मशहूर है हमारी,सादगी भी कमाल है ..
हम शरारती भी इंतेहा के है, तन्हा भी बेमिसाल हैं।

मेरी हर सांस को महका गया तू कैसे शुक्रिया
अदा करू तेरा…इस नाचीज को इश्क करना सिखा गया तु।

Nikal parte hain aansu jab tumhaari yaad aati hai..
Yeh woh barsaat hai jiska koi mausam nahin hota.

अजीब खेल है ये मोहब्बत का,
किसी को हम न मिले, कोई हमें ना मिला।

उसने देखा ही नहीं अपनी हथेली को कभी,
उसमे हलकी सी लकीर मेरी भी थी।

तमाम नींदें गिरवी हैं हमारी उसके पास,
जिससे ज़रा सी मुहब्बत की थी हमनें।

कितने सालों के इंतज़ार का सफर खाक हुआ,
उसने जब पूछा.. कहो कैसे आना हुआ।

हाथों की लकीरे पढ़ कर रो देता है दिल,
सब कुछ तो है मग़र तेरा नाम क्यूँ नहीं है।

इश्क अभी पेश ही हुआ था इंसाफ के कटघरे में,
सभी बोल उठे यही कातिल है.. यही कातिल है।

ना जाने वो कितनी नाराज़ है मुझसे..
ख्वाब में भी मिलती है तो.. बात नहीं करती।

जी करता है तेरे संग भीगू मोहब्बत की बरसात मे,
और रब करे.. उसके बाद तुझे इश्क़ का बुखार हो जाए।

उनका इल्ज़ाम लगाने का अंदाज ही कुछ गज़ब का था,
हमने खुद अपने ही ख़िलाफ गवाही दे दी।

ज़िंदगी में मोहबत का पौधा लगाने से पहले ज़मीन परख लेना,
हर एक मिटटी की फितरत में वफ़ा नहीं होती दोस्तो।

सुना है तुम्हारी एक निगाह से कत्ल होते हैं लोग..
एक नज़र हमको भी देख लो.. ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती।

वो इतना रोई मेरी मौत पर मुझे जगाने के लिए..
मैं मरता ही क्यूँ अगर वो थोडा रो देती मुझे पाने के लिए।

खुद भी रोता है, मुझे भी रुला के जाता है..
ये बारिश का मौसम, उसकी याद दिला के जाता हैं।

बड रहा है दर्द गम उस को भूला देने के बाद
याद उसकी ओर आई खत जला देने के बाद।

निगाहों से भी चोट लगती है जनाब..
जब कोई देख कर भी अन्देखा कर देता है।

वो दुआएं काश मैने दीवारों से मांगी होती,
ऐ खुदा.. सुना है कि उनके तो कान होते है।

आईना आज फिर रिशवत लेता पकडा गया,
दिल में दर्द था ओर चेहरा हंसता हुआ पकडा गया।

इश्क है या इबादत.. अब कुछ समझ नहीं आता,
एक खुबसूरत ख्याल हो तुम जो दिल से नहीं जाता।

लोगो ने कुछ दिया, तो सुनाया भी बहुत कुछ
ऐ खुदा.. एक तेरा ही दर है, जहा कभी ताना नहीं मिला।

कहीं फिसल न जाऊं तेरे ख्यालों में चलते चलते,
अपनी यादों को रोको मेरे शहर में बारिश हो रही है।

फ़िक्र तो तेरी आज भी है..
बस .. जिक्र का हक नही रहा।

तुमसे ऐसा भी क्या रिश्ता हे?
दर्द कोई भी हो.. याद तेरी ही आती हे।

काग़ज़ पे तो अदालत चलती है..
हमने तो तेरी आँखो के फैसले मंजूर किये।

एम्बुलेंस सा हो गया है ये जिस्म,
सारा दिन घायल दिल को लिये फिरता है।

हम तो बिछडे थे तुमको अपना अहसास दिलाने के लिए,
मगर तुमने तो मेरे बिना जीना ही सिख लिया।

ताला लगा दिया दिल को.. अब तेरे बिन किसी का अरमान नहीं..
बंद होकर फिर खुल जाए, ये कोई दुकान नहीं।

सिखा दिया दुनिया ने मुझे अपनो पर भी शक करना
मेरी फितरत में तो गैरों पर भी भरोसा करना था..!!

जो इस दुनियाँ में नहीं मिलते , वो फिर किस दुनियाँ में मिलेंगे जनाब..
बस यही सोचकर रब ने एक दुनियाँ बनायी , जिसे कहते हैं ख्वाब।

जुनून, हौसला, और पागलपन आज भी वही है
मैंने जीने का तरीका बदला है तेवर नहीं..!!

हम ने भी कह दिया उनसे की बहुत हो गयी जंग बस..
बस ए मोहब्बत तुझे फ़तेह मुबारक मेरी शिक्स्त हुई।

किस मुँह से इल्ज़ाम लगाएं बारिश की बौछारों पर,
हमने ख़ुद तस्वीर बनाई थी मिट्टी की दीवारों पर !!

बारिश और महोबत दोनों ही यादगार होते हे,
बारिश में जिस्म भीगता हैं और महोबत मैं आँखे.

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