जुल्म के सारे हुनर हम पर यूँ आजमाये गये,
जुल्म भी सहा हमने.. और जालिम भी कहलाये गये।
ज़ख्म कहां कहां से मिले है, छोड़ इन बातो को,
ज़िन्दगी तु तो ये बता, सफर कितना बाकी है।💕
यादे अपनी साथ ले जाओ मुझ को क्यो तड़पाती है,
मेरे ख्याल मेरे नस नस मे इस तरह कब्जा जमाती है।
पहले तुम.. अब यादें तुम्हारी,
दुश्मनी क्या है.. मुझसे तुम्हारी।
आज फिर कोई दिल को इस कदर सता रहा है,
आज फिर कोई दूर जाने का इशारा करके पास बुला रहा है।❤
चाहत थी या, दिल्लगी या, यूँ ही मन भरमाया था,
याद करोगे तुम भी कभी, किससे दिल लगाया था!
क्या बताऊं यार तुझको.. प्यार मेरा कैसा है,
चांद सा नही है वो.. चांद उसके जैसा है। 💝
तलब ये है कि मैं सर रखूँ तेरे सीने पे..
और.. तमन्ना ये कि मेरा नाम पुकारती हों धड़कनें तेरी।
काश कोई इस तरह भी वाकिफ हो मेरी जिंदगी से,
कि में बारिश में भी रोऊँ और वो मेरे आंसू पढ़ ले।
चल चलें किसी ऐसी जगह जहाँ कोई न तेरा हो न मेरा हो,
इश्क़ की रात हो और.. बस मोहब्बत का सवेरा हो..!! 💓
दोहरे चरित्र में नहीं जी पाता हूँ,
इसलिए कई बार अकेला नजर आता हूँ।
दरख्तों से ताल्लुक का, हुनर सीख ले इंसान,
जड़ों में ज़ख्म लगते हैं, टहनियाँ सूख जाती हैं।
तुम्हारा दबदबा लोगो यहाँ सिर्फ ज़िन्दगी तक है
किसी की कब्र के अंदर ज़मींदारी नही चलती।
बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना है,
ये तजरबा भी इसी ज़िंदगी में करना है।
मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो,
मेरी तरह तुम भी झूठे हो।
दिल तोड़ना आज तक नही आया मुझे,
प्यार करना माँ से जो सिखा मेने।
कैद में परिंदा आसमान को भूल जाता हैं,
कैद से छूट भी गया तो उड़ान भूल जाता हैं।
शर्मा कर मत छुपा चहरे को पर्दे में,
हम चेहरे के नहीं, तेरी आवाज के दीवाने है।
दिल का दर्द अपना अब सारी हदें आर पार कर रहा है,
दिलबर भी कितना संगदिल है एक जुर्म को ही बार बार कर रहा है।
यहाँ गरीब को मरने की इसलिए भी जल्दी है ग़ालिब,
कहीं जिन्दगी की कशमकश में कफ़न महँगा ना हो जाए।
समंदर न सही पर एक नदी तो होनी चाहिए,
तेरे शहर में ज़िंदगी कहीं तो होनी चाहिए।
माना कि बहुत कीमती है वक़्त तेरा,
मगर.. हम भी नवाब हैं बार-बार नहीं मिलेंगे।
खेलना अच्छा नहीं किसी के नाज़ुक दिल से..
दर्द जान जाओगे.. जब कोई खेलेगा तुम्हारे दिल से।
ख़ुदा बदल न सका आदमी को आज भी यारो,
और अब तक आदमी ने सैकड़ों ख़ुदा बदले।
तुम अच्छे हो तो बेहतर, तुम बुरे हो- तो भी कबूल,
हम मिज़ाज-ऐ-दोस्ती में ऐब-ऐ-दोस्त नहीं देखा करते।
मैं ख्वाहिश बन जाऊँ, और तू रूह की तलब,
बस यूँ ही जी लेंगे दोनों मोहब्बत बनकर।
शतरंज मे वज़ीर और ज़िंदगी मे ज़मीर,
अगर मर जाए तो समझिए खेल ख़त्म।
अब इस से ज्यादा क्या नरमी बरतू
दिल के ज़ख्मो को छुया है तेरे गालों की तरह।
हुस्न भी तेरा, अदाएं भी तेरी, नखरे भी तेरे,
शोखियाँ भी तेरी, कम से कम इश्क़ तो मेरा रहने दे।
लोग कहते हैं किसी एक के चले जाने से जिन्दगी अधूरी नहीं होती,
लेकिन लाखों के मिल जाने से उस एक की कमी पूरी नहीं होती है।
कुछ ज्यादा नही जानते मोहब्बत के बारे में,
बस उन्हें सामने देखकर मेरी तलाश खत्म हो जाती है।
सुनो मेरी जान तुम्हारा हाथ पकड़कर घूमने का,
दिल करता है, चाहे वो ख़्वाबों में हो या हक़ीक़त में।
मैं मतलबी नहीं जो साथ रहने वालो को धोखा दे दू..
बस मुझे समझना हर किसी के बस की बात नहीं।
कोई भी रिश्ता ना होने पर भी जो रिश्ता निभाता हैं,
वो रिश्ता एक दिन दिल की गहराइयों को छू जाता हैं।
मत रख इतनी नफ़रतें अपने दिल में ए इंसान,
जिस दिल में नफरत होती है उस दिल में रब नहीं बसता।
अपनी खामोशी में मुझे क्यूँ तलाश रहे है हुजूर..
अपने धडकनों से पूछो मेरा एक बसेरा वहां भी है।
सबक तो तूने बहुत सिखाये ए जिंदगी,
मगर शुक्रिया तेरा किसी का दिल तोड़ना नही सिखाया।
अभी काँच हूँ इसलिए सबको चुभता हूँ,
जिस दिनआइना बन जाऊँगा, उस दिन पूरी दुनियाँ देखेगी।
अगर निगाहे हो मंज़िल पर और कदम हो राहो पर,
ऐसी कोई राह नही जो मंज़िल तक ना जाती हो।
कौन कहता है आग से आग बुझती नहीं,
हुज़ूर, दिल से ज़रा दिल, लगा कर तो देखो।
प्रेम की धारा, बहती है जिस दिल में,
चर्चा उसकी होती है, हर महफ़िल में।
चूम लेती हैं लटक कर, कभी चेहरा कभी लब,
तुमने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चड़ा रखा हैं।
चेहरा देख कर इंसान पहचानने की कला थी मुझमें,
तकलीफ़ तो तब हुई जब इन्सानों के पास चेहरे बहुत थे।
होता अगर मुमकिन तो.. तुझे साँस बना कर रखते अपने दिल में,
तू रुक जाये तो मैं नही, मैं मर जाऊँ तो तूम नही।
किन लफ़्ज़ों में बंया करूँ मैं अपने दर्द को,
सुनने वाले तो बहुत है मगर समझने वाला कोई नही।
आख़िरी घूंट तक उसे पिला साक़ी,
मयकदे की कसम अभी भी होश में है वो।
आँखों मे लगाकर काजल, जुल्फों मे बसाकर बादल,
ए मेरे सनम तुम कहा चले, हवा मे ल़हरा कर आँचल।
दिल मे ना जाने कैसे तेरे लिए इतनी जगह बन गई,
तेरे मन की हर छोटी सी चाह मेरे जीने की वजह बन गई।
ब इस से ज्यादा क्या नरमी बरतू,
दिल के ज़ख्मो को छुया है तेरे गालों की तरह।
शहर भर की जुलेखाओ को पर्दे की नसीहत करने वाले बहोत हैं,
कोई मेरे शहर के यूसुफो से भी कहे के निगाहे नीची रखें।
Superbb 👌👌
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ReplyDeleteNice
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