Hindi Shayari

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यकीन और दुआ नजर नहीं आते, मगर नामुमकिन को मुमकिन बना देते हैं। अब कौन से मौसम से हम आस लगायें, बरसात में भी याद न जब उनको हम आये। ऐ दिल! मत कर इतनी मोहब्बत तू किसी से, इश्क़ में मिला दर्द तू सह नहीं पायेगा, टूट कर बिखर जायेगा एक दिन अपनों के हाथों, किसने तोड़ा ये भी किसी से कह नहीं पायेगा। यकीन और दुआ नजर नहीं आते, मगर नामुमकिन को मुमकिन बना देते हैं। मेरी आँखों में मोहब्बत की चमक आज भी है, फिर भी मेरे प्यार पर उसको शक आज भी है, नाव में बैठ कर धोये थे उसने हाथ कभी, पानी में उसकी मेहँदी की महक आज भी है।

ना शौक दीदार का, ना फिक्र जुदाई की, बड़े खुश नसीब हैँ वो लोग जो, मोहब्बत नहीँ करतेँ।


सुकून की बातमत कर ऐ दोस्त..
बचपन वाला ‘इतवार’ जाने क्यूँ अब नहीं आता।

मैंने कहा बहुत प्यार आता है तुम पर..
वो मुस्कुरा कर बोले और तुम्हे आता ही क्या है।

चेहरा बता रहा था कि मारा है भूख ने,
सब लोग कह रहे थे कि कुछ खा के मर गया।

सिखा दी बेरुखी भी ज़ालिम ज़माने ने तुम्हें,
कि तुम जो सीख लेते हो हम पर आज़माते हो।

वो जिनके हाथ में हर वक्त छाले रहते हैं,
आबाद उन्हीं के दम पर महल वाले रहते हैं।

ना शौक दीदार का, ना फिक्र जुदाई की,
बड़े खुश नसीब हैँ वो लोग जो, मोहब्बत नहीँ करतेँ।

मोहब्बत कर सकते हो तो खुदा से करो ‘दोस्तों’
मिट्टी के खिलौनों से कभी वफ़ा नहीं मिलती

कुछ इस तरह बुनेंगे हम अपनी तकदीर के धागे
कि अच्छे अच्छो को झुकना पड़ेगा हमारे आगे।

बहुत ज़ालिम हो तुम भी मुहब्बत ऐसे करते हो
जैसे घर के पिंजरे में परिंदा पाल रखा हो।

मेरे अन्दर कुछ टूटा है
बस दुआ करो वो दिल ना हो।


मोहब्बत न सही मुकदमा कर दे मुज पर..
कम से कम तारीख दर तारीख मुलाकात तो होगी।

मुझे बदनाम करने का बहाना ढूँढ़ते हो क्यों,
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो।

जिन के आंगन में अमीरी का शजर लगता है,
उन का हर एब भी जमानें को हुनर लगता है.

तजुर्बा कहता है मोहब्बत से किनारा कर लूँ,
और दिल कहता हैं की ये तज़ुर्बा दोबारा कर लू।

ये झूठ है के मुहब्बत किसी का दिल तोड़ती है,
लोग खुद ही टुट जाते है, मुहब्बत करते-करत।

ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया,
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए।

गर तेरी नज़र क़त्ल करने मे माहिर है तो सुन,
हम भी मर मर के जीने मे उस्ताद हो गए है।

दिल मेरा भी कम खूबसूरत तो न था,
मगर मरने वाले हर बार सूरत पे ही मरे।

किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर,
‘ईश्वर’ बैठा है, तू हिसाब ना कर।

ऐ दिल थोड़ी सी हिम्मत कर ना यार,
चल दोनों मिल कर उसे भूल जाते है।

मैं उसकी ज़िंदगी से चला जाऊं यह उसकी दुआ थी,
और उसकी हर दुआ पूरी हो, यह मेरी दुआ थी।

तुझे मुफ्त में जो मिल गए हम,
तु कदर ना करे ये तेरा हक़ बनता है।

रोना ही है ज़िन्दगी तो हँसाया क्यो,
जाना था दूर तो नज़दीक़ आया ही कयो।

रोने से और इश्क़ मे बे-बाक हो गए,
धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए।

कुछ लोग जमाने में ऐसे भी तो होते हैं,
महफिल में तो हंसते हैं तन्हाई में रोते हैं।

तूने मेरा आज देख के मुझे ठुकराया है,
हमने तो तेरा गुजरा कल देख के भी मोहब्बत की थी।

एहसान जताना जाने कैसे सीख लिया,
मोहब्बत जताते तो कुछ और बात थी।

कितने मज़बूर है हम तकदीर के हाथो ना तुम्हे
पाने की औकात रखतेँ हैँ, और ना तुम्हे खोने का हौसला।

पहले ज़मीं बाँटी फिर घर भी बँट गया,
इनसान अपने आप मे कितना सिमट गया।

रूकता भी नहीं ठीक से चलता भी नही..
यह दिल है के तेरे बाद सँभलता ही नही।

सुनो एक बार और मोहब्बत करनी है तुमसे,
लेकिन इस बार बेवफाई हम करेंगे।

तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया..
ख़ुश हूँ कि कुछ न कुछ तो मेरे पास रह गया।

पता नही कब जाएगी तेरी लापरवाही की आदत..
पगली कुछ तो सम्भाल कर रखती, मुझे भी खो दिया।

तू होश में थी फिर भी हमें पहचान न पायी,
एक हम है कि पी कर भी तेरा नाम लेते रहे।

आ जाते हैं वो भी रोज ख्बाबो मे,
जो कहते हैं हम तो कही जाते ही नही।

मोहब्बत का कोई रंग नही फिर भी वो रंगीन है,
प्यार का कोई चेहरा नही फिर भी वो हसीन हैं।

तुम्हें चाहने की वजह कुछ भी नहीं,
बस इश्क की फितरत है, बे-वजह होना।

हाल तो पूछ लू तेरा पर डरता हूँ आवाज़ से तेरी,
ज़ब ज़ब सुनी है कमबख्त मोहब्बत ही हुई है।

यह इनाएतें गज़ब की यह बला की मेहेरबानी,
मेरी खेरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी।

जरूरत है मुझे नये नफरत करने वालाे की,
पुराने ताे अब मुझे चाहने लगे है।

चलते रहेगें शायरी के दौर मेरे बिना भी…
एक शायर के कम हो जाने से शायरी खत्म नहीं हो जाती।

सुनो तुम दिल दुखाया करो इजाजत है
बस कभी भूलने की बात मत करना।

पंखों को खोल कि ज़माना सिर्फ उड़ान देखता है,
यूँ जमीन पर बैठकर, आसमान क्या देखता है।

ईश्क की गहराईयो में खूब सूरत क्या है,
मैं हूं, तुम हो, और कुछ की जरूरत क्या है।

जब कभी टूट कर बिखरो तो बताना हमको,
हम तुम्हें रेत के जर्रों से भी चुन सकते हैं।

कुछ इस तरह फ़कीर ने ज़िन्दगी की मिसाल दी,
मुट्ठी में धूल ली और हवा में उछाल दी।

तुम ना लगा पाओगे अंदाजा मेरी तबाही का,
तुमने देखा ही कहाँ है मुझको शाम होने के बाद।

उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं,
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं।

मरने के नाम से जो रखते थे होठों पे उंगलियां,
अफसोस वही लोग मेरे दिल के कातिल निकले।

सच्चाई थी पहले के लोगों की जबानों में
सोने के थे दरवाजे मिट्टी के मकानों में।

झूठ कहते हैं लोग कि मोहब्बत सब कुछ छीन लेती है,
मैंने तो मोहब्बत करके, ग़म का खजाना पा लिया।

मुझे मेरी माँ ने एक ही बात सिखाई है,
बेटा कोई हाथ से छीन के लेकर जा सकता है पर नसीब से नही।

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